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Essay on ''Increasing rate of petrol'' in hindi | petrol diesel ki kimton me vraddhi ka prabhav

       पेट्रोल - डीजल की कीमतों में वृद्धि का प्रभाव 





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गत कुछ वर्षों से पेट्रोल-डीज़ल कौ कीमतों में निरंतर वृदथि हो रही है। इससे आम उपभोक्ताओं कौ कमर टुट रही है। पेट्रोल-डीज़ल पर से सरकार का नियंत्रण हट गया है और अब तेल कंपनियों को मनमानी करने के लिए खुली छुट दे दो गई है। सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह से पल्ला झाड लिपा है। आम जनता को त्तेल कंपनियों के रहमोकरम पर छोह दिया गया है। आम उपभोक्ता स्वयं को ठगा-सा महसूस करता हैं।

     त्तेल कंपनियों का घाटा कभी  पुरा नहीं होत्ता, चाहै विश्व बाजार मैं कच्चे तेल के दाम कितने ही क्यों न गिर जाएँ वे निरंतर घाटे का रीना रोती रहती हैँ। सरकार भी उनके ऊल-जलूल तर्कों को सच मान लेती है अथवा उनसे उनकी मिलीभगत है। पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में वृदधि का सीधा असर आम आदमी पर पडता है। इससे सभी प्रकार के किरायों में वृदूधि हो जाती है अत: यात्रा महँगी हो जाती है। अन्य वस्तुएँ जिनका पेट्रोल-डीज़ल से कोई सीधा संबंध नहीं होता, वे भी महँगी हो जाती हैं। इसका कारण है कि माल ढुलाई पर पेट्रोल-डीज़ल कौ बढती कीमतें असर डालती हैं। अब तो हर दो माह मैं पेट्रोल-डीजल को कीमतें बढ़ रही हैँ और उसके कारण अन्य वस्तुएँ भी महँगी होती चलो जा रही हैँ। महँगाई कौ मार से जनता पहले ही त्रस्त है, उसे पेट्रोल-डीज़ल की वढ़ती कीमतें और रुला रही हैं। जीवन उपयोगी सभी वस्तुएँ इससे प्रभावित हो रही हैँ। पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी के जीवन-यापन को दूभर बना दिया है। उसे समझ ही नहीं आ रहा है कि वह गृहस्थी को गाडी को किस प्रकार खींचे।


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 सरकार  के अपने अजीब तर्क होते हैं. विपक्षी दल एक…दो दिन शोर मचाकर चुप हो जाते हैं, मानो उनके कर्तव्य की इतिश्री ही गई। सरकार अकर्मण्यता की मन८स्थिति में है या ऐसा दिखाने की कोशिश कर रही है। पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों के साथ रसोई गैस कौ कीमत' का मामला भी जुड़ा हुआ है। उसे भी बढा दिया जाता है। पेट्रोल-डीज़ल को कीमतें बढाने से सब्जी-फलों के दाम भी बढ़ जाते हैँ। स्कूटर-टेक्सी वाले भो अपने किराए बढा देते हैं। जिनके पास अपने वाहन हैं, उम्हें वाहनों को चलाने में आर्थिक बोझ का सामना करना पडता है। आम आदमी विषम स्थिति में र्फसकर रह जाता हैं। वह न जो सकता हैं और न मर सकतां है। उसकी तकलीफ को समझने चाला कोई नहीं है। सरकार को वर्ष में एक बार पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों की समीक्षा का अधिकार अपने हाथों मैं रखना चाहिए। वह जनता के प्रति जवाबदेह है। वह इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकती।

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