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Best ever essay on ''Rainy Season'' in Hindi | Varsha Ritu essay in hindi

                                         वर्षा ऋतू 


भारत विविध ऋतुओं वाला देश है। ये सभी ऋतुएँ अपना-अपना आकर्षण रखती हैँ। मुझे वर्षा ऋतु सर्वाधिक प्रिय हं। यदि कवियों ने वसंत को ऋतुराज की उपाधि से विभूषित किया है तो वर्षा को ऋतुरानी कहकर उसे भी सम्मानित किया है। संपूर्ण विश्व में भारत की धरा को ही यह सौभाग्य प्राप्त है कि षइऋतुओं का चक्र यहॉ क्रमानुसार घूमता है। वर्षा ऋतु के दो मास मुख्य माने जाते हैँ…जुलाई तथा अगस्त, पर सामान्य रूप से वर्षा ऋतु जून के मध्य से आरंभ होकर सितंबर के अत तक होती है।


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वर्षा आने से पूर्व संसार ग्रीष्म की भयंकस्ता से त्राहि-त्राहि कर रहा होता है। सूर्य की प्रचंड किरणों से संतप्त तथा प्यासी धरती का दीन कृषक बादलों की और आँख लगाए कहता है-'काले मेघा पानी दे '1 गरम पवन के थपेडों से सुमन, पौधे तथा वृक्ष झुलस जाते हैँ और प्राणी निढाल हो जाते हैं।

जब आकाश में बादल गर्जन का नगाड़ा बजाकर जन-जन को वर्षा रानी के आगमन की सूचना से अवगत कराते हैं, तो कृषक का 'मन-मयूर नाच उठता है। खेतों में खड़े पौधे हवा में झूम-झूम कर वर्षा का स्वागत करते हैं। मोर नृत्य करते हैं और पपीहा आकाश मै पिऊ-पिऊ करता हुआ उड़ान भरता है। आषाढ़ की प्रथम बौछार पहले ही सबका मन खुशी सै नाच उठता है।

वर्षा आई और मेघों वे झडी लगाई। जंगल में मंगल हो गया । छोटे-बड़े नदी-नाले इतराकर आपे से बाहर हो गए। मेंढकों की टर्र-टर्र, झीगुरों की झंकार तथा जुगनुओं की जलती-बुझती चिंगारी से रात्रि में आनंद छा जाता है। वर्षा के जल से प्रकृति मैं चेतना आ जाती है। रंदृ।-बिरंगे बादल आकाश में उमड़ने लगते हैं। उनका गर्जन-तर्जन और विदूयुत का चमकना बड़ा सुहावना लगता है।



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वर्षा ऋतु के आने के साथ ही त्योहारों की झडी लग जाती है। ऐसे सुहावने मौसम में तीज का त्योहार आता है। अमराइयों में झूले पहुँ होते हैँ। इस अवसर पर ग्रामीण भारत की छटा देखते ही बनती है। फलों के राजा आम की बहार आ जाती है। कभी-कमी आकाश में इंद्रधनुष की निराली छटा मन को मोह लेती है। पुरवैया पवन अपना राग अलापने लगती है। वर्षा की सुंदरता का वर्णन तुलसीदास ने इस प्रकार किया हैँ



                                    वर्षा काल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सुहाए। 



वर्षा प्राणीमात्र के लिए नया जीवन लाती है। जीवन का अर्ध यानी भी है। सृष्टि की रचना के लिए आवश्यक पाँच तत्वों में जल एक अनिवार्य तत्त्व है। जल के बिना जीवन असंभव है। भारत जैसै कृषि प्रधान देश में तो वर्षा का और मी अधिक महत्त्व है। वर्षा ही वनस्पति का आधार है। वर्षा ही पृथ्वी की प्यास बुझाकर उसे तृप्त करती है।

जिस प्रकार वर्षा के न होने से अकाल पइ जाता है, उसी प्रकार अधिक वृष्टि विनाश का तांडव करती है। नदियों का प्रवाह इधर-उधर बहकर खडी फसलों को चौपट कर देता हैँ। इससे गाँव के गाँव बह जाते हैँ फिर सावन की मल्हारें शोक गीतों मे' परिणत हो जाती हैं। बाढ से जान-माल की काफी हानि होती है। हरे-भरे प्रदेश रेगिस्तान में बदल जाते हैं। वर्षा में कौट-पतंगे मी बहुत बढ़ जाते हैं। मार्ग अवरन्दूध हो जाते हैं। जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।

इतना होते हुए मी वर्षा का बड़ा ही महत्त्व हैं। यदि बर्षा न होती, तो संसार में कुछ भी न होता 1 वर्षा एक ऐसी ऋतु है, जौ हमें जीवन देती है, वनस्पति में रसों का संचार करती है तथा संसार के पालन-पोषण में अपना योगदान देती है।


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