शिक्षा का माध्यम - मातृभाषा
मातृभाषा वह होती है जिसे बच्चा अपनी माँ से सीखता है। उसे सीखने के लिए उसे क्रोइं बिशेष प्रयास नहीं काना षड़ता। बच्चा माँ क्री गोद में रहकर उसके मुख से निकली ध्वनियों को सहज रूप में स्वीकार कर लेता है। जब बच्चा बोलना प्रारंभ करता है तब उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम जो भाषा बनती है, वही मातृभाषा होती है। इसका महत्त्व इसलिए है क्योकि इसमें बालक निष्प्रयास सहज रूप मैं अपने मन के भावों को अथिव्यवत कर माता है। अन्य भाषाएँ तो उसे सप्रथास सीखनी पड़ती हैं।
अब प्रश्च उठता है कि बालक को किस भाषा के माध्यम से शिक्षा दी जाए। आजकल अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने का चलन बढता जा रहा है लेकिन हमें यह नही भूलना चाहिए कि जालक की मौलिक प्रतिभा के बिकास के लिए उसे मातृभाषा मैं ही शिक्षा दी जानी चाहिए। मातृभाषा में भावों का सहज अधिग्रहण होता है। उसमें अधिक सोच-विचार की आवश्यकता नहीं रह जाती है। मातृभाषा में भावों एवं विचारों का सहज उच्छुखलन होता है। अत: मातृभाषा में शिक्षा देना अधिक तर्कसंगत है।
मातृभाषा को शिक्षण का माध्यम बनाना पूर्णत: मनौवैज्ञानिक है। यदि हम मनौवैज्ञानिक दृष्टि से बिचार करें तो हमें ज्ञात होता है कि चालक मातृभाषा में सबसे अधिक सहजता का अनुभव करता है। इसमें उसे किसी भी प्रकार के बोझ या दबाव की अनुभूति नहीँ होती। जालक अपनी मातृभाषा में ही सोचता और समझता है। इसके लिए उसे किसी शब्दकोश की आवश्यकता नहीं होती। उसे मातृभाषा का प्रयोग कर आत्मतुष्टि का अनुभव होता है। अत: मातृभाषा में शिक्षण देना अनिवार्य होना चाहिए।
संसार के अधिकांश देशों में शिक्षण का माध्यम मातृभाषा ही है। उम्हें अपनी मातृभाषा के प्रयोग पर गर्व होता है। रूस में रूसी भाषा से शिक्षा दी जाती है तो फ्रांस मेँ फ्रेंच में, जर्मनी मॅ जर्मन में। भारत में स्थिति कुछ अलग दिखाई देती है। यहाँ अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देना आधुनिकता का पर्याय मान लिया गया है। इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हो रहा है कि भारत की प्रतिभा पूरी तरह से नहीं उभर षा रही है। तमिलनाडु का बालक अपनी मातृभाषा तमिल माध्यम से पढाई कर अपनी प्रतिभा का बेहतर प्रदर्शन कर सकता है। हॉ, अंग्रेजी को एक भाषा के रूप में तो पढाया जा सकता है, पर इसे शिक्षा का माध्यम नहीं बनाया जाना चाहिए।
देश की उन्नति के लिए मातृभाषा को ही शिक्षा का माध्यम बनाना होगा। महात्मा गॉधी जी ने भी अपनी बुनियादी शिक्षा में मातृभाषा को ही शिक्षण का माध्यम स्वीकार किया था। कुछ लोगों ने पाश्चात्य सभ्यता कौ चकाचौंध के वशीभूत होकर अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने की वकालत कौ। यही कारण है कि भारत अभी तक सभी को प्रारंभिक शिक्षा की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करा पाया है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में बच्चे मातृभाषा में शिक्षित होकर तरक्सी कौ दोइ में शहरी बच्चों के समकक्ष आ सकेगे। मातृभाषा के माध्यम बनने से शिक्षा का प्रसार तेजी से होगा। शिक्षाविदों को इस बारे में गंभीस्तापूर्वक सोचना होगा और मातृभाषा को शिक्षण का माध्यम बनाने के पक्ष में फैसला लेना ही होगा।

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