मौज मस्ती का त्यौहार : होली
होली का त्योहार फाल्युन मास क्री शुक्ल पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है । इस समय ऋतुराज वसंत का स्वागत करने के लिए प्रकृति अपनी सुंदरता उँडेल देती है । भौंरों का गान और कोकिल की मधुर तान मनं को मोह लेती है । कहा जाता है कि राक्षसों का राजा हिरण्यकशिपु घोर नास्तिक और अत्याचारी था। उसके राज्य में ईश्वर का नाम लेना भी पाप समझा जाता था। लेकिन हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रहलाद ईश्वर का पवका भबत्त निकला। उसने ईश्वर का नाम लेना न छोड़ा।
हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए, लेकिन प्रहलाद ईश्वर की कृपा से बचता गया । अंत मैं हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को बुलाया। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती। डिरण्यकशिपु के कहने पर प्रहलाद होलिका के साथ अग्नि में प्रवेश कर गया । ईश्वर की महिमा बिचित्र है, प्रहलाद बच गया और होलिका जल गई। इसी पावन घटना को स्मृति में प्रति वर्ष रात को होली जलाई जाती है और यह उत्सव बही धूमधाम से मनाया जाता है।
होली का त्योहार मनाने का एक और कारण भी है। हमारा देश कृषि प्रधान देश है। फरवरी और मार्च के महीने मैं गेहूँ और चने के दाने अधपके हो जाते हैँ। इनको देखकर किसान खुशी से झूम उठता है। अग्नि देवता को प्रसन्न करने के लिए वह गेहूँ के बालों की अग्नि में आहुति देता है।
इस त्योहार की चहल-पहल बही निराली है। बालक-बालिकाएँ लकहियों एवं उपलों का ढेर इकटठा करते हैं। रात्रि मैं लकडियों और उपलों के इस ढेर में आग लगा दी जाती है। लोग खुशी से इसके चारों तरफ घूम… घूमकर नाचते और गाते हैं। नई फसल सै प्राप्त अन्न को भूनकर सब लोग खाते हैं।
होली के अगले दिन घुलेडो होती हैँ। प्रात :काल से लेकर सायंकाल तक समस्त नर…नारी क्या बूढा, क्या जवान-सब फाग खेलने में मस्त रहते हैँ। इस दिन निर्धन और धनी का , बिदृवान और मूर्ख का भेद समाप्त हो जाता है। सब लोग एक…दूसरे के ऊपर गुलाल छिड़कते हैँ और अबीर लगाते हैँ। रंग भरी पिचकारियों से यह धरती रंगीन हो जाती है। सड़कॉं पर अलमस्त युवाओं और बृदृधों की टोलियाँ नाचती, गाती और गुलाल मलती हुई दिखाई देती हैँ। युवकों का यह हुड़दंग उल्लास प्रदान करने वाला होता है।
वस्तुत: होली एक पवं हो नहीं अपितु एक पुण्य पर्व है। इस दिन एक और जहॉ लोगों के मन में अपार हर्ष उमड़ता है, वहीं दुश्मन भी वैर-बिरोध तथा भेद-भाव छोडकर गले मिलते हैं। अपनी गलतियों को भुलाकर वे पुन: मित्र बन जाते हैं।
होली का पर्व उल्लास पैदा करने वाला है, इसलिए इसे उल्लासपूर्बक ही मनाना चाहिए। आजकल बहुत से लोग तारकोल, गंदी नाली का पानी तथा कीचड राह चलते लोगों पर उछालते हैं जिसे कोई सभ्य व्यक्ति सहन नहीं कर सकता। परिणामस्वरूप स्थान-स्थान पर झगहं भो हो जाते हैँ। कुछ लोग इस दिन शराब पोते हैं और हुडदंग मचाते हैँ। यह प्रबृस्ति बहुत खराब है। इस पर रोक लगाने की आवश्यकता है। होली मस्ती का त्योहार अवश्य है, पर उच्छुखलता का कतई नहीं है। होली को हमें शालीन ढंग से मनाना चाहिए।
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