टी.वि. (दूरदर्शन) : वरदान या अभिशाप
वर्तमान युग में दूरदर्शन घर - परिवार का एक अनिवार्य अंग बन चुका है । उच्च वर्ग तथा मध्य वर्ग के लोगों के अतिरिक्त निम्न वर्ग के लोग भी दूरदर्शन के विना नहीं रह सकते । दूरदर्शन का आधुनिक जीवन पर गहरा प्रभाव लक्षित होता है1
वर्तमान युग में दूरदर्शन सभी लोगों के आकर्षण का केद्र है। घर के बड़े-बूहं लोग आजकल दूरदर्शन पर फिल्में क्या अन्य कार्यक्रम देखकर समय व्यतीत करत्ते हैँ। दूरदर्शन पर दहेज विरोधी ऐसी फिल्में तथा अन्य प्रकार की सामाजिक टेली फिल्में प्रदर्शित होती रहती हैं जिम्हें देखकर अनेक लोगों के विचारों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। घरों में पति-पत्नी भी व्यर्थ की नोक-झोंक छोड़कर फुर्सत के समय अपने मनपसंद के कार्यक्रम देखते रहते हैँ। बडों को बच्चों से तथा बच्चों को बडों सै केसा व्यवहार करना चाहिए, इसे टीवी. पर प्रदर्शित अनेक कार्यक्रमों में देखा जा सकता है। दूरदर्शन पर विमिन प्रकार के विज्ञापन भी प्रदर्शित होते हैँ। इनका भी सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कम आय वाले लोगों के मन में विलासिता की चीजें लेने की उमंग उठती है जिसका पारिवारिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
दूरदर्शन पर मात्यक्रम संबंधी कार्यक्रम प्रसारित होते रहते हैँ। इनका विदूयार्थियों को लाभ भी पहुँचता है। अन्य ज्ञानवर्धक कार्यक्रम मी उपयोगी हैँ। पर विदूयार्थों वर्ग इस प्रकार के कार्यक्रमों मेँ कम रुचि लेता है।
दूरदर्शन का पारिवारिक जीवन पर दुष्प्रभाव कहीं अधिक मात्रा मैं दिखाई पड़ता है। अधिकांश घरों के सदस्य आपस में बातचीत कम करते हैँ तथा दूरदर्शन के कार्यक्रम अधिक देखते हैँ। दूरदर्शन का विदूयार्थिमों क्री पढाई पर बुरा प्रभाव पड़ता है। दूरदर्शन के कारण अधिकांश परिवार अतिथि-सत्कार की भारतीय परंपरा को भूलते जा रहे हैँ। टीबी. पर मनपसंद कार्यक्रम आ रहा हो और ऐसे समय में कोई अतिथि आ जाए तो चहै’ स्वयं को उपेक्षित अनुभव करता है। 'केबल' टीबी. क्री कृपा से आजकल सारा दिन विभिन्न चैनलों पर कार्यक्रम प्रदर्शित होते रहते हैँ। विदेशी कार्यक्रमों में हिंसा और सैक्स के दृश्य बहुत अधिक मात्रा में दिखाए जाते हैँ। इन कार्यक्रमों को लगातार देखने से लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बड़ा बुरा प्रभाव पड़ता है। परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठ कर इन कार्यक्रमों को देखने मै लज्जा अनुभव करते हैं। जी.टी.बौ. और स्टार टीवी. पर प्रदर्शित कुछ कार्यक्रमों में तो जीवन के अंतरंग क्षणों को सहज रूप सै उभारा जाता हैं। विदेशों मैं तो योन शिक्षा के नाम पर नग्नता ही प्रदर्शित की जाती है। इन सबका सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
फैशन चैनल ने तो भारतीय संस्कृति का सर्वनाश करने का डेका लिमा हुआ हैँ। इस चैनल पर विभिन्न देशों की मॉडल्स को अर्धनग्न रूप मैं प्रदर्शित किया जाता है। इस चैनल दवारा नारी को केवल भोग को वस्तु के रूप मैं प्रदर्शित किया जात्ता है। बिदूयार्थियों के कोमल मन पर इस प्रकार के कार्यक्रमों का दूषित प्रभाव महता है। आजकल विभिन्न सीरियलों में मी विवाहेत्वर अवैध संबंधों को बहुत अधिक बढा-चढाकर दिखाया जा रहा है जिससे सामाजिक जीवन पर इसका दुष्प्रभाव थड़ रहा है। समाज मैं विथिन्न प्रकार के अपराधों कौ संख्या में भी वृदूथि हौ रही है।
दूरदर्शन जहॉ एक और ज्ञान और भक्ति का जन-जन में विकास कर रहा है, वहीं यह युवा पीढी को दिरभ्रमित कॉ रहा है। मनोरंजन के नाम पर उसके सम्मुख जो सामग्री परोसी जा रही है वह उसे विनाश की ओर ले जा रही हैँ। इसी क्या कुछ प्रचलित सीरियलों में स्वी का विलेन रूप उभारा जा रहा है और उसकी ममता, प्रेम और सहजता को नष्ट करने की साजिश की जा रही है। यह सब भारतीय नारी की छबि से सर्वथा विपरीत है। इन क्रुलटा चरित्रों ने स्तियों की सोच में ही विकार ला दिया हैं। परिवारों क्रो सुख-शांति नष्ट होती चली जा रही है। ऐसा 'लगता है धनी परिवारों की स्तिर्यों कौ धहूयंत्र रचने के अलावा अन्य कोई काम रइ ही नहीं गया है। पर पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बना लेने को सहज्जा के साथ दिखाया जा रहा है। यह स्थिति नारी के कदमों को विनाश की और ले जा रही है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि दूरदर्शन के विनाशकारी रूप को रोका जाना चाहिए।
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